क्या सोचा था अपने? जब सीता को छोड़ दिया था ,कि अपने बहुत प्यार करने वाली पत्नी का साथ न देकर ,आप समाज को अपना निर्णय औरत पर छोड़ देने का तरीका सीखा रहे है?ये सिखाया कि, समाज के लिये आपके कर्तव्य सर्वश्रेष्ठ है ?क्या मतलब निकल लिया, इस पुरुष प्रधान समाज ने। क्या अपने सही किया ,एक पत्नी होने के नाते मेर प्रश्न है आप से ?कि एक औरत को ही क्यो त्याग की मूरत बनाया जाए ,,?नही चाहती कि सीता को त्याग कर अपने समाज को एक सीख दी कि खुद निर्णय लो और सौप दो उस पर ।रीत की बात कर यही अपेक्षा की जाती है कि पत्नी बन कर रहो,पति बनने की कोशिश भी मत करो ।मेर आरोप है आप पर ।कि सही नही किया आपने । कष्ट तकलीफ की हकदार सीता ही क्यो ?क्या उन्होने भी यही चाहा था कि समाज के लिये आप उनका त्याग करो? अगर यही चाहा थाउन्होने, तो फिर आपको पुनः स्वीकार नही किया? क्यो देख आपको वो धरती की गोद में समा गयी? क्या वो थक नही चुकी थी समाज की सोच से ?जिसका वो शिकार हो गयी? आपने अपनी चाहत थोप दी सीता पर ।क्यो कष्ट सीता ने ही सहा, मुझे नही लगता कि आपका निर्णय उनके लिये लेना उचित था ।पुछ तो लिया होता एक बार उनसे भी ।तो शायद मिल जाता हमे भी अधिकार कि हमारे लिये निर्णय हम खुद ही ले सकते । राम बनने की कोशिश तो समाज में हर कोई करता है, फिर हमसे सीता बनने की अपेक्षा की जाती है। हम नही महान सीता की भान्ति । पर अपने ही समाज के लोगो को क्या ये नही सिखाया,कि औरत के विचार मत जानो ,जो चाहा आपने किया। भले ही वो आपकी महानता होगी ,पर इस समाज की बहुत सारी औरतों का प्रश्न है आपसे कि एक औरत की चाहत को कभी महतव क्यो नही दिया जाता?दिया भी जायेगा या हमेशा की तरह सीता का नाम लेकर थोप दिया जायेगा पुरुष का निर्णय औरतों पर ।हमे नही स्वीकार आपका तरीका ।अब आओ और समाज को बताओ कि इस युग में सीता की जरुरत नही ,क्योकि नही सह सकती वह सीता की भान्ति ,जरुरत केवल इस बात की ,कि करने दो हमे भी हमारे मन की ।
दम घुटता है लगता है आज़ाद होकर भी आज़ाद नही अपना निर्णय खुद लेने के लिये ।
अब आप ही आओ और बताओ कि पंख ईश्वर ने उनको भी लगाये है कर लेने दो उनको अपने मन की । गलत नही है ये ।
दम घुटता है लगता है आज़ाद होकर भी आज़ाद नही अपना निर्णय खुद लेने के लिये ।
अब आप ही आओ और बताओ कि पंख ईश्वर ने उनको भी लगाये है कर लेने दो उनको अपने मन की । गलत नही है ये ।